ॐ
मां के दिन
दिन ही नहीं होते थे
मां के पास
दिन तो उसकी बन्द हथेली में होते थे
जब चाहती थी
खोल कर हथेली झाड़ देती थी
चाहे कुछ भी न रहे
खुद भी नहीं
वह रोज अपनी सांस
हमें बांट देती थी
यही उसकी पूजा थी
और यही प्रसाद
उसकी अपनी देह
उसके पास भी नहीं थी
वह थी कहाँ वह तो अपने को
हम संततियों के साथ
पुनर्जन्म ही तो साध रही थी
मां के दिन कब नहीं होते ।
Maa ke Din
maa
din hi
maa
din to
jab
khud
yahi
ham
maa