Category: Kavita Sangrah

पिता होता है बनता नहीं

ॐ पितापुरुष नहींपद हैसनातन पर निर्भारप्रथम पिता नेअपनी संतति कोअपार धरती , प्राण वायुप्रकृति का उदार स्नेह,नदियां ,पर्वत , जीवन बांटती वनस्पतियां चांद, सूरज, तारे,आकाशकी देखरेख में ,काल की अदृश्य उपस्थितिसौंपकरइस पद का अभिषेक किया होगा पिता होता हैबनता नहीं। pita purush nahin pad hai sanaatan par nirbhaar pratham pita ne apanee santati...

शहर शुभकामनाओं से टंगा भरा है

ॐ जन गण मन अभिशप्त आतंकित हो उठा है जिस किसी ने अपने चेहरे होर्डिंगों में हाथ जोड़े नम्रता की कोशिशों में गौर से देखो ,चमक उसकी नज़र की एक भूखे भेड़िए की लपलपाती जीभ टपकती लार की बूंदों से नहाये ,गंधाये वे शब्द हर नुक्कड़ को अपने अपने...

शाम होते ही…

ॐ शाम होते ही हवाएँ गुम हैं साँस लें भी तो नहीं और जियें कैसे दिन के हर गर्दो गुबारों को लिए लौटा हूँ घर वह तो जब भूल चुका था तो मिले कैसे कितने सूरज को जो झेला हो वो कम कैसे है अब तो एहसास ही नहीं...

निकला नहीं हूँ अब तक मगर

ॐ निकला नहीं हूँ अब तक मगर निकाल दिया जाऊँगा –जब जोखिम का एक विशाल शिला खंड तुम्हारी ओर लुढकाने तुम्हारी पीढ़ी दर पीढ़ी को अचानक किसी दोपहर कुछ देर की गर्दो – गुबार में सबको शांत कर देने जिसे हटाना भी मुश्किल होगा क्योंकि वह पहाड़ ही होगा...

शब्द

ॐ बख्श दीजिये आँखों पे ना इतना चढ़ाइए कल कोई पहचानने से इंकार ना कर दे शब्द  अजन्मा अशेष शाश्वत  मूल धातु तो ध्वनि है  जो आकृति –मूलक होकर  आकार ग्रहण करता है  उदभव भले ही किसी भाषा के महासागर से हुआ हो  फिर भी उसकी बपौती नहीं है  उसकी...

हमारे मोहल्ले में

ॐ हमारे मोहल्ले में – सुबह होती है कुछ लोग हाथ में झाड़ू ,पानी भरा मग लगभग दौड़ते  हुए / सब के पांव धोती लुंगी पाजामे में पहुँचने जर्जर कभी गेट रहे गेट की काली मुंडेर तक पहुँचने आकास से अधिक अगल बगल के मकानों की ओर देखते आशंकाओं...