Month: November 2015

शब्द

ॐ बख्श दीजिये आँखों पे ना इतना चढ़ाइए कल कोई पहचानने से इंकार ना कर दे शब्द  अजन्मा अशेष शाश्वत  मूल धातु तो ध्वनि है  जो आकृति –मूलक होकर  आकार ग्रहण करता है  उदभव भले ही किसी भाषा के महासागर से हुआ हो  फिर भी उसकी बपौती नहीं है  उसकी...

प्रेमचंद के मानवेतर चरित्र

ॐ कथाकार प्रेमचंद की लेखन शैली की विशेषता यह रही है कि चरित्र और परिवेश के चुनाव में एक सतर्क दृष्टि तथा सोद्देश्य वातावरण निर्माण के कारण कहानी प्रत्येक पाठक की आत्मचेतना की स्थायी स्मृति बन जाती है . अपने विपुल कथा सृजन में लेखक ने समाज ,व्यक्ति ,धर्म...