जन गण मन
ॐ जन –आँख उठाये /तकते गगन उलझती आँखों से /संकट की राह भरोसा किसीका नहीं /हांफती जिंदगी जो छूता /वही पत्थर कहाँ जाए /किसे कहे एक खारा सैलाब /चल पड़ा है अपनी जगह /अपना आसमान /खोजने – जंगल, मैदान, सिन्धु, कावेरी, गंगा, गोदावरी, नर्मदा और पर्वत भी वह उतना...