मैंने अपने शिक्षक वृत्ति जीवन के ३५ वर्ष गुजार दिए | जिस विश्वविद्यालय में हूँ मेरे विषय में प्रतिवर्ष दो चार शोध –प्रबंध समर्पित होते ही रहते हैं | कई मौखिकी –परीक्षा में उपस्थित रहने का अफ़सोस भी हुआ है | किसी परीक्षा में कोई विद्यार्थी अनुत्तरित रहकर भी डिग्री प्राप्त कर ले यह वही परीक्षा है | स्वागत सत्कार विदाई की रस्मों को सम्मान शब्द से विभूषित कर इसकी तयारी और प्रस्तुति अधिक सुन्दर होती है | मेरी इच्छा होती है कि इसी विश्वविद्यालय के अधीन विगत ३० वर्षों में प्रस्तुत हुए अपने विषय के शोध – ग्रंथों पर ही शोध करूँ ताकि इस रस्म – अदाई की परमम्परा को एक सन्देश संप्रेषित हो सके | इस परंपरा को विश्वविद्यालय सेवा शर्तों , अनिवार्य शर्तों में शामिल कर प्रदूषित किया जा रहा है कैसा दुर्भाग्य है यह प्रोफेसर होने का द्वार ही खोल देता है | ऐसे लोग यदि शोध करते हैं और कराते हैं और कराते ही हैं तो इस क्षेत्र की मौलिकता नष्ट होने में कोई संदेह नहीं |